इलाहाबाद उच्च न्यायालय

ई-इलाहाबाद उच्च न्यायालय निर्णय पत्रिका


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ई-इलाहाबाद उच्च न्यायालय
निर्णय पत्रिका

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के इतिहास का सारांश

इलाहाबाद उच्च न्यायालय, भारत में न्यायिक प्रणाली के विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 1834 से 1861 तक, भारत में दो अलग-अलग न्यायालय प्रणालियाँ थीं - राजा के न्यायालय और ईस्ट इंडिया कंपनी के न्यायालय। 1861 में भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम पारित होने के बाद, इन दोनों प्रणालियों को एकीकृत करने का प्रयास किया गया। 1866 में आगरा में उत्तर पश्चिमी प्रांतों के लिए एक नया उत्तर-पश्चिमी प्रांतीय उच्च न्यायालय स्थापित किया गया, जिसे कुछ विशेष मामलों में मूल क्षेत्राधिकार प्रदान किया गया, परंतु यह सामान्य नागरिक अधिकार क्षेत्र नहीं था। 1869 में इस न्यायालय की पीठ आगरा से इलाहाबाद स्थानांतरित कर दी गई और वर्ष 1916 से यह वर्तमान भवन से संचालित हो रहा है। 1919 में इस उच्च न्यायालय का नाम बदलकर 'इलाहाबाद उच्च न्यायालय, इलाहाबाद’ कर दिया गया, जो वर्तमान मे प्रयागराज जनपद मे स्थित है। इस उच्च न्यायालय को अधीनस्थ न्यायालयों पर अधीक्षण की शक्तियाँ दी गईं, जो बाद में भारत के संविधान में भी शामिल की गईं। अवध क्षेत्र में, 1856 से 1925 तक न्यायिक आयुक्त का न्यायालय अपील का सर्वोच्च न्यायालय था, जिसका कालांतर मे इलाहाबाद उच्च न्यायालय में विलय कर दिया गया। यह इतिहास दर्शाता है कि कैसे भारतीय न्यायिक प्रणाली धीरे-धीरे विकसित हुई और एकीकृत हुई, जिसने आधुनिक भारत के न्यायिक ढांचे की नींव रखी।

ई-इलाहाबाद उच्च न्यायालय निर्णय पत्रिका परिषद

संरक्षक

माननीय न्यायमूर्ति श्री अरुण भंसाली


परिषद सदस्य

माननीय न्यायमूर्ति श्री अजित कुमार

माननीय न्यायमूर्ति श्री मोहम्मद फ़ैज़ आलम खान

माननीय न्यायमूर्ति श्री विक्रम डी. चौहान

लोकार्पण

भारत के नागरिकों को उनकी अपनी भाषा में निर्णय उपलब्ध कराकर उनमें विधिक जागरूकता फैलाने की माननीय न्यायमूर्ति डॉ. डी. वाई. चंद्रचूड़, भारत के मुख्य न्यायमूर्ति की पहल व माननीय न्यायमूर्ति श्री अभय एस. ओका, अध्यक्ष, उच्चतम न्यायालय ए. आई. असिस्टेड लीगल ट्रांसलेशन एडवाइज़री कमेटी के निरंतर मार्गदर्शन के फलस्वरूप उच्च न्यायालय ए. आई. असिस्टेड लीगल ट्रांसलेशन एडवाइज़री और ई-लॉ रिपोर्ट कमेटी के सघन पर्यवेक्षण, निगरानी और दिशानिर्देशों द्वारा विकसित इस वेब एप्लीकेशन का लोकार्पण माननीय न्यायमूर्ति श्री अरुण भंसाली, मुख्य न्यायमूर्ति, इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 11.03.2024 को किया गया है।

इसी क्रम मे ई-निर्णय पत्रिका के वेब पेज का अद्यतनीकरण कर उसे श्रेष्टतर बनाने का निरंतर प्रयास किया जा रहा हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य प्रदेशवासियों को हिन्दी भाषा में निर्णय उपलब्ध कराकर उनमें विधिक जागरूकता फैलाना हैं।

माननीय न्यायमूर्ति डॉ. धनन्जय यशवन्त चन्द्रचूड़
भारत के मुख्य न्यायमूर्ति

Dr. Justice D Y Chandrachud
Chief Justice Of India

Message

I am delighted to pen this message to congratulate the High Court of Judicature at Allahabad for the launch of the upgraded e- Law Report, enhanced along the lines of the Supreme Court Digital SCR. It brings me immense joy to see our efforts at the Supreme Court being institutionalized across the country. The fact that a High Court, with which I share a special bond, is making significant strides fills me with even greater happiness.

Legal research has undergone a transformative evolution. Gone are the days of scouring through rows of dusty law manuals, with students, researchers, and lawyers searching tirelessly for relevant case law. The use of virtual platforms, such as the e- Law Report has revolutionized legal research, enabling efficient identification of cases on relevant legal principles. Such facilities must remain free, ensuring equal access for all members of the legal fraternity.

Ensuring that access to our judgments and orders is free not only benefits members of the fraternity but also brings our institutions closer to ordinary citizens. Judgments of our courts are no longer the preserve of those with legal training and are now easily accessible to a broader audience - litigants, members of the government, journalists, and members of civil society. As the judgments of our constitutional courts enter the discourse of common citizens, the values embedded in our Constitution will also be injected into their daily lives.

In this way, initiatives like the e-Law Report serve a profound purpose beyond mere technological upgrades. By making judgments readily accessible, they facilitate a deeper understanding of our constitutional values among citizens. After all, “the Constitution has within it the ability to produce a social catharsis” [Navtej Johar v. Union of India (2018) 10 SCC 1]. By bringing the Constitution closer to the people, we edge closer to realizing this potential for social catharsis, paving the way for a more just, aware, and vibrant society.

Once again, I extend my warmest congratulations! I eagerly anticipate future innovations and progress in the High Court of Judicature at Allahabad, which can serve as a model for courts across the country.


Dr. Dhananjaya Y Chandrachud

माननीय न्यायमूर्ति श्री अभय एस. ओका,
अध्यक्ष,
उच्चतम न्यायालय ए.आई. असिस्टेड लीगल ट्रांसलेशन एडवाइज़री कमेटी

Dear Brother Justice Ajit Kumar,

The High Court of Judicature at Allahabad has rendered a great service to the litigants and the members of the Bar by launching the ‘e-Law Report’ of the High Court. Now, you propose to upgrade it to digital law reports. The upgrade will significantly enhance its utility.

The object of suggesting to all the High Courts to start their e-Law Reports, is to ensure that the junior members of the Bar have the benefit of a law journal of the High Court judgments free of cost. Junior members of the Bar cannot afford to subscribe to available e-Law Reports. Moreover, e-Law Reports are helpful for law students as well.

E- Law Report of the High Courts should have a proper search facility. The endeavour should be to report original English judgments and its translated version in regional languages. The translated versions of the judgments will be immensely helpful to young lawyers practising at the taluka level.

I compliment you and your colleagues, who are members of the AI Assisted Legal Translation Advisory & e- Law Report Committee of the High Court of Judicature at Allahabad, for this excellent initiative.

I wish a great success to the project.

मुख्य न्यायमूर्ति,
इलाहाबाद उच्च न्यायालय

माननीय न्यायमूर्ति श्री अरुण भंसाली

संदेश

“ई-इलाहाबाद उच्च न्यायालय निर्णय पत्रिका” सुवास प्रकोष्ठ की एक अनूठी पहल है, जिसका उद्देश्य उत्तर प्रदेश से उत्पन्न वादों में उच्चतम न्यायालय के निर्णयों तथा अन्य महत्वपूर्ण निर्णयों के अनुवाद एवं हमारे न्यायालय के अनुवादित निर्णयों को संकलित करना और उन्हें आम जनता, वादकारियों, अधिवक्ताओं, न्यायिक अधिकारियों, सरकारी विभागों और विधि विश्वविद्यालयों/महाविद्यालयों तक आसानी से पहुँचाना है। हम सभी जानते हैं कि न्यायिक निर्णयों का सही और सटीक अनुवाद कितना महत्वपूर्ण है। ई-इलाहाबाद उच्च न्यायालय निर्णय पत्रिका इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह हमारे अनुवादित निर्णयों को एक डिजिटल प्लेटफॉर्म पर संग्रहीत कर रही है और इन्हें सभी संबंधित पक्षों के लिए सुलभ बना रही है।

मैं उन सभी का धन्यवाद करना चाहता हूँ जिन्होंने इस परियोजना को सफल बनाने में पूर्ण समर्पण भाव और परिश्रम से अपना अमूल्य योगदान दिया है। मुझे विश्वास है कि इस प्रयास से उच्च न्यायालय के निर्णयों की आमजन तक पहुँच आसान होगी और वो निर्णयों को सरलता से समझ सकेंगे। मुझे आशा है कि न्यायमूर्ति श्री अजित कुमार, न्यायमूर्ति श्री मोहम्मद फ़ैज़ आलम खान और न्यायमूर्ति श्री विक्रम डी. चौहान के कुशल मार्गदर्शन में इस उच्च न्यायालय का सुवास प्रकोष्ठ भारत के माननीय मुख्य न्यायमूर्ति डॉ. डी. वाई. चंद्रचूड़ की पहल एवं माननीय न्यायमूर्ति श्री अभय एस. ओका, अध्यक्ष, उच्चतम न्यायालय ए. आई. असिस्टेड लीगल ट्रांसलेशन एडवाइज़री कमेटी के निर्देशन में कार्यान्वित इस प्रयत्न की सफलता में नित नये कीर्तिमान स्थापित करेगा ।

अध्यक्ष,
उच्च न्यायालय ए.आई. असिस्टेड लीगल ट्रांसलेशन एडवाइज़री
एवं
ई-लॉ रिपोर्ट कमेटी इलाहाबाद उच्च न्यायालय

माननीय न्यायमूर्ति श्री अजित कुमार

संदेश

हिन्दी साहित्य जगत के महान लेखक एवं कवि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने कहा है "निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निजभाषा ज्ञान के मिटे न हिये के सूल" अर्थात, एक उन्नत समाज के मूल में अपनी भाषा का ज्ञान होना और उसी में अभिव्यक्ति की क्षमता होना समाज की इकाई स्वरूप एक व्यक्ति के लिये सर्वाधिक आवश्यक है। तात्पर्य यह है कि समाज के विकास एवं उसके फलस्वरूप देश के चतुर्मुखी विकास में अपनी भाषा एवं उसमे कार्य करने का महत्व सर्वाधिक होता है। किसी भी देश का न्यायतन्त्र देश की उन्नति एवं विकास हेतु एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। न्यायपालिका द्वारा दिये गये निर्णय आम जनमानस के लिये अत्यधिक महत्व रखते हैं, विशेष रूप से उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय जहाँ संविधान की व्याख्या की जाती है, ऐसे न्यायालयों के निर्णयों का लोगों की क्षेत्रीय भाषा में होना अत्यन्त आवश्यक हो जाता है। सामाजिक विकास को न्यायसंगत एवं समाज को न्यायप्रिय बनाने के लिये इन न्यायालयों के निर्णयों को लोक भाषाओं में उपलब्ध होना ही चाहिये।

हमे इस बात की अपार प्रसन्नता है कि हमारे देश के मुख्य न्यायमूर्ति माननीय डॉ० धनन्जय यशवंत चन्द्रचूड़ जी की अगुवाई में आज देश के सभी उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी भाषा में दिये गये निर्णयों को उनकी क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवादित करने का एक वृहद कार्यक्रम चलाया जा रहा है और हमारे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इसी कार्यक्रम के अन्तर्गत हिन्दी निर्णयों के संग्रह स्वरूप "ई-इलाहाबाद उच्च न्यायालय निर्णय पत्रिका" का विमोचन/ लोकार्पण पूर्व में किया है।

इसी कड़ी में माननीय न्यायमूर्ति श्री अभय एस. ओका, उच्चतम न्यायालय, एवं अध्यक्ष "उच्चतम न्यायालय ए. आई. असिस्टेड लीगल ट्रांसलेशन एडवाइज़री कमेटी" द्वारा प्रदत्त दिशा निर्देशों के क्रम में अब हमारी "ई-इलाहाबाद उच्च न्यायालय निर्णय पत्रिका" एक नये संस्करण के साथ नये आयाम की ओर अग्रसर है। यह पत्रिका अपने नये स्वरूप में निर्णयोंं को विषयवार जैसे अनेक खोज विकल्पों द्वारा विषय वस्तु विशेष निर्णय उपलब्ध करा सकेगी, जिससे समय एवं ऊर्जा की अपार बचत हो सकेगी।आशा है, विधि एवं न्याय से संबंधित व अन्य सभी जिज्ञासु हिन्दी भाषी व्यक्तियों को यह पत्रिका उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के निर्णयों को समझने में सरलता प्रदान करेगी और विधि एवं न्याय से संबंधित अन्य विषय वस्तु को भी हिन्दी भाषा में उपलब्ध करा कर लोकहित में उपयोगी साबित होगी।

मुझे यह भी आशा है कि भविष्य में समय के साथ यह पत्रिका और ऊंचे आयामों को छूते हुए विषय सम्बन्धित सभी व्यक्तियों की आशाओं पर खरी उतरेगी और समयानुकूल आवश्यकताओं को भी पूरा करेगी।

मैं इस पत्रिका के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ और उन सभी लोगों को बधाई देता हूँ जिनके अथक प्रयासों से इस पत्रिका का नया संस्करण जारी हो रहा है।

सदस्य,
उच्च न्यायालय ए.आई. असिस्टेड लीगल ट्रांसलेशन एडवाइज़री
एवं
ई-लॉ रिपोर्ट कमेटी इलाहाबाद उच्च न्यायालय

माननीय न्यायमूर्ति श्री मोहम्मद फ़ैज़ आलम खान

संदेश

ई-इलाहाबाद उच्च न्यायालय निर्णय पत्रिका हमारे न्यायालय के अनुवादित निर्णयों का एक व्यापक संग्रह है, जिसे आम जनता, वादकारियों, अधिवक्ताओं, न्यायिक अधिकारियों, सरकारी विभागों और विधि विश्वविद्यालयों/महाविद्यालयों तक पहुँचाने के उद्देश्य से तैयार किया गया है।

न्यायिक निर्णयों का अनुवाद न्यायिक पारदर्शिता और समझ के लिए आवश्यक है। ई-इलाहाबाद उच्च न्यायालय निर्णय पत्रिका इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है, जो हमारे अनुवादित निर्णयों को डिजिटल रूप में प्रस्तुत करेगी, जिससे वे सभी संबंधित पक्षों के लिए सहजता से उपलब्ध होंगे।

यह पत्रिका न केवल हमारी न्यायिक प्रणाली की प्रभावशीलता और पारदर्शिता को बढ़ाएगी, बल्कि विधि शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान देगी। विधि के छात्र, शोधकर्ता और विधि के पेशेवर इस पत्रिका का उपयोग कर न्यायिक निर्णयों की गहन समझ प्राप्त कर सकेंगे।

इस अवसर पर, मैं उन सभी का आभार व्यक्त करना चाहता हूँ जिन्होंने इस परियोजना को सफल बनाने में अपना सहयोग और समर्पण दिया है तथा जिनके प्रयासों के बिना यह संभव नहीं हो पाता।

धन्यवाद।

सादर

सदस्य,
उच्च न्यायालय ए.आई. असिस्टेड लीगल ट्रांसलेशन एडवाइज़री
एवं
ई-लॉ रिपोर्ट कमेटी इलाहाबाद उच्च न्यायालय

माननीय न्यायमूर्ति श्री विक्रम डी. चौहान

संदेश

भारतीय न्याय प्रणाली को सरल और सुगम बनाने के लिए सर्वप्रथम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों को आम जनमानस की भाषा में उपलब्ध कराना होगा। इसी पहल पर उच्च न्यायालय, इलाहाबाद की ए. आई. असिस्टेड लीगल ट्रांसलेशन एडवाइज़री एवं ई-लॉ रिपोर्ट समिति द्वारा ई-इलाहाबाद उच्च न्यायालय निर्णय पत्रिका का लोकार्पण कर अनुवादित निर्णयों को डिजिटल रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिससे अनुवादित निर्णय सभी के लिए सहजता से उपलब्ध हो सकें। जब न्यायालय वादकारी के हित में उनकी भाषा में निर्णय उपलब्ध कराती है, तो वह न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय को समझ पाता है और सही अर्थ में न्याय प्राप्त करता है।

इस अवसर पर, मैं उन सभी का आभार व्यक्त करना चाहता हूँ, जिन्होंने इस अत्यंत महत्वपूर्ण परियोजना को सफल बनाने में अपना सहयोग और समर्पण दिया है। आपके अथक प्रयासों के बिना यह संभव नहीं हो पाता।

मैं आशा करता हूँ कि यह पत्रिका भारतीय न्याय प्रणाली को आम जनमानस के लिए सरल और सुगम बनाने में एक मील का पत्थर साबित होगी।

धन्यवाद।

वरिष्ठ संपादक:

1. श्री विजय कुमार सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता

2. श्री विनय सरन, वरिष्ठ अधिवक्ता

संपादक मण्डल

1. श्री कुणाल शाह,
2. श्री पंकज कुमार अस्थाना,
3. श्री आशीष कुमार,
4. श्री आशीष सिंह,
5. श्री प्रखर सरन श्रीवास्तव,
6. श्री आशुतोष कुमार राय,
7. श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव,
8. सुश्री गौरी दुबे,
9. सुश्री निधि वर्मा,
10. श्री पी. के. श्रीवास्तव,
11. सुश्री साक्षी मेहरोत्रा,
12. श्री विनायक वर्मा,
13. श्री अनिल मिश्रा,
14. श्री ब्रिज भूषण मिश्रा,
15. सुश्री साधना सिंह,
16. श्री अनिल गुप्ता,
17. सुश्री अर्चना सिंह,
18. सुश्री नाज़िया नफीस,
19. श्री यावर मुख्तार,
20. श्री कार्तिकेय सिंह

पदेन सदस्य

1. श्री दिवाकर द्विवेदी (समिति के प्रस्तुतकर्ता अधिकारी)-समन्वयक-संपादक मंडल

2. श्री विवेक श्रीवास्तव, उप-निबंधक, सुवास प्रकोष्ठ इलाहाबाद

3. श्री विनोद कुमार त्रिपाठी, अनुभाग अधिकारी, सुवास प्रकोष्ठ, इलाहाबाद

4. डॉ. अनुपम श्रीवास्तव, समीक्षा अधिकारी, सुवास प्रकोष्ठ, इलाहाबाद

5. श्री मनीष कुमार सिंह, समीक्षा अधिकारी, सुवास प्रकोष्ठ, इलाहाबाद

उद्देश्य

ई-इलाहाबाद उच्च न्यायालय निर्णय पत्रिका का उद्देश्य इलाहाबाद उच्च न्यायालय एवं इसकी लखनऊ खंडपीठ द्वारा दिए गए निर्णयों के अंग्रेजी - हिंदी संस्करणों के लिए अलग-अलग खोज विकल्प उपलब्ध कराना है ताकि इसकी बड़े पैमाने पर जनता, वादकारियों, अधिवक्ताओं, न्यायिक अधिकारियों, सरकारी विभागों, विधि महाविद्यालयों/ विश्वविद्यालयों और बार एसोसिएशनों तक पहुंच हो सके।

इसमें उत्तर प्रदेश राज्य से उत्पन्न वादों में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिवेद्य/महत्वपूर्ण निर्णय भी सम्मिलित हैं। इसके अतिरिक्त सामयिक अंतिम आदेश/ निर्णय का अनुवाद भी उपलब्ध कराना है।

सुविधा हेतु, अद्यतन विधि के साथ अन्य अधिनियमों का अनुवाद भी पत्रिका मे उपलब्ध रहेगा।

सॉफ़्टवेयर

ई-इलाहाबाद उच्च न्यायालय निर्णय पत्रिका एप्लीकेशन, उच्च न्यायालय के कंप्यूटर अनुभाग द्वारा विकसित किया गया है, जिसमें विकास एवं नियमित सुधार शामिल है ताकि एप्लीकेशन की सुचारू कार्यक्षमता और सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

सामग्री प्रबंधन

ई-इलाहाबाद उच्च न्यायालय निर्णय पत्रिका का हिंदी संस्करण, इलाहाबाद उच्च न्यायालय और उसकी लखनऊ खंडपीठ के सुवास प्रकोष्ठ द्वारा ए.आई. अनुवाद तकनीक के उपयोग से प्रदान किया गया है।

अस्वीकरण

अनुवादित संस्करण में पूर्ण एवं सही जानकारी प्रदान करने के लिए उच्च न्यायालय, इलाहाबाद एवं उसकी लखनऊ खंडपीठ के सुवास प्रकोष्ठ द्वारा उचित सतर्कता और सावधानी बरती गई है। अनुवाद, ए.आई. (कृत्रिम बुद्धिमता) टूल की सहायता से किया जा रहा है। सही अनुवाद करने के उचित प्रयास किए गए हैं। उच्च न्यायालय, इलाहाबाद एवं उसकी लखनऊ खंडपीठ की रजिस्ट्री/सुवास प्रकोष्ठ गलत या अशुद्ध अनुवाद और अनुवादित पाठ की अन्तर्वस्तु में किसी भी त्रुटि, चूक या विसंगति के लिए जिम्मेदार नहीं होगी। निर्णयों का अनुवाद सामान्य जानकारी के लिए प्रदान किया गया है और अनुपालन के लिए इसका कोई कानूनी प्रभाव नहीं होगा। यदि अनुवादित निर्णय में निहित जानकारी/कथन की सटीकता से संबंधित कोई प्रश्न उठता है, तो उपयोगकर्ताओं को उसे निर्णय के मूल संस्करण से सत्यापित करने की सलाह दी जाती है। यहां उपलब्ध कराया गया अनुवाद कानूनी साक्ष्य के लिए नहीं है। उच्च न्यायालय, इलाहाबाद एवं उसकी लखनऊ खंडपीठ, आधिकारिक वेबसाइट पर दी गई जानकारी के प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष उपयोग से होने वाली किसी भी क्षति या हानि के लिए किसी भी रूप में ज़िम्मेदार नहीं होंगे। हालाँकि, यदि सुधार हेतु हमारे संज्ञान में कोई त्रुटि/चूक लाई जाती है, तो हम इसके लिए आभारी होंगे।